AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-17

    अध्याय-6

    अनजान शख्स
    भाग-1
    
    ★★★
    
    आर्य और आयुध दोनों ही अपने कमरे ( झोपड़ी) में आ गए। आर्य के कमरे में एक ही बेड था मगर उसके कमरे में काफी सारी खाली जगह पड़ी थी।
    
    आर्य ने आयुध को कहा “तुम यहां कमरे में मेरे मेहमान हो। इसलिए तुम यहां बेड पर सो जाना जबकि मैं नीचे सो जाऊंगा। इससे तुम्हें भी किसी तरह की खास दिक्कत नहीं होगी।”
    
    आयुध ने कमरे का मुआयना किया और पूरी तरह से देखने के बाद बेड पर जाकर बैठ गया। बेड पर बैठने के बाद उसने अपने पट मसले। पट मसलता हुआ वह बोला “क्या तुम्हें मेरी बहन‌ पसंद?”
    
    आर्य यह सुनकर पूरी तरह से चौंक गया। वह मटके की तरफ पानी पीने गया था जहां उसका हाथ मटके में जाने ही वाला था लेकिन आयुध के कहने के बाद उसका हाथ जहां था वहीं रुक गया।
    
    आयुध आगे बोला “मैंने देखा है तुम दोनों की काफी अच्छी बनती है। तुम दोनों काफी अच्छे से बात करते हो। एक दूसरे के पास रहकर खुश भी रहते हो। एक दूसरे से मिलना जुलना भी ज्यादा होता है।”
    
    आर्य उसकी ओर मुड़ा और कहां “हां लेकिन इसका मतलब यह नहीं की मैं उसे पसंद करता हूं। मैं यहां किसी और को जानता नहीं, और मुझसे बात करने वाली सिर्फ वही है। तो मेरा इस तरह से बात करना जायज है।”
    
    “तो फिर मेरी बहन तुम्हें पसंद करती होगी। वह यहां काफी लड़कों को जानती है मगर किसी से भी इस तरीके से बात नहीं की। किसी के साथ इतना घुली मिली भी नहीं। मगर उसका तुम्हारे साथ व्यवहार अच्छा है। वह जब तुम्हारे साथ रहती है तो काफी खुश रहती है।”
    
    आर्य सोचता हुआ बोला “मुझे नहीं लगता उसके साथ भी ऐसा कुछ होगा। फिर अभी हम दोनों की उम्र ही कितनी है। वह शायद इसलिए बात करती होगी क्योंकि मैंने तुम्हारी जान बचाई। वह भी खतरों से भरे जंगल में जाकर। हमारे बीच में पसंद करने जैसा कुछ भी नहीं है। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त जरूर हैं। और यह दोस्ती भी कल रात ही शुरू हुई है।”
    
    आयुध खड़ा हुआ और आर्य के पास आया। उसने आर्य के कंधे पर हाथ रखा और घूरते हुए आर्य को कहा “देखो तुम यहां नए आए हो। ऐसे में तुम्हें कुछ कहना मेरे लिए भी ठीक नहीं होगा। लेकिन एक बात... जो मैं तुम्हें बता दूं। मैं मेरी बहन से प्यार करता हूं, बहुत ज्यादा, इसलिए तुम अपने रिश्ते को दोस्ती तक ही रखना। इससे आगे बढ़ने की कोशिश मत करना। अगर मैंने ऐसा कुछ भी देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”
    
    आयुध इतना कहते हुए वापस जाकर बेड पर बैठ गया। आर्य चुपचाप खड़ा था। आयुध के बेड पर बैठ जाने के बाद आर्य मुड़ा और जाकर मटके से पानी निकाल लिया। उसने पानी का एक गुट गले में उतारा और कहा “अगर तुम अपनी बहन से इतना ही प्यार करते हो तो उसे छोड़ कर क्यों जा रहे हो? तुमने यह आश्रम छोड़ने वाली जिद क्यों पाल रखी है?”
    
    “क्या मतलब..?” आयुध ने अपने हाथ उछाले “यह मेरा निजी फैसला है। एक इंसान होने के नाते मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं...। मैं चाहे आश्रम छोड़ कर जाऊं या ना जाऊं... इसमें उसकी तो कोई बात ही नहीं आती।”
    
    “मेरे ख्याल से आती है..” आर्य ने पानी का दोबारा घूंट भर लिया “अब जैसे कि समझने के लिए मैं तुम्हें मेरा और हिना का एग्जांपल देता हूं, अभी हम दोनों के बीच में नजदीकियां बढ़ रही है तो तुम इसे अपनी आंखों से देख रहे हो। मगर कल को तुम जब यहां नहीं होगे तो क्या होगा..? तुमने कहा है कि तुम अपनी बहन से प्यार करते हो। तुम्हारे जाने के बाद तो तुम्हारे इस प्यार के कोई मायने नहीं रहने वाल। तुम अगर अपनी बहन की फिक्र भी करोगे तो चाह कर भी उसके लिए कुछ नहीं कर पाओगे। आश्रम छोड़ना.... तुम्हारे लिए उतना फायदेमंद साबित नहीं होगा... जितना नुकसानदायक हिना के लिए होगा।”
    
    “तुम कहना क्या चाहते हो? क्या मेरे जाने के बाद मेरी बहन की हिफाजत करने वाला कोई नहीं होगा? उसे जादू आता है। वह अपनी हिफाजत खुद कर सकती है। कल तुम्हारे सामने उसने एक बड़े बालू से भी लड़ाई की। मैं उसकी सुरक्षा को लेकर कभी भी फिक्रमंद नहीं होऊंगा।”
    
    “मैं उसकी सुरक्षा की बात नहीं कर रहा..” आर्य आयुध के पास आया और उसके पास ही बेड पर बैठ गया। “मेरे कहने का मतलब था तुम भाई होने के नाते उसकी केयर करते हो। लेकिन तुम्हारे जाने के बाद उसकी केयर करने वाला कोई नहीं रहेगा। वह पूरी तरह से अकेली पड़ जाएगी। मैं तुम्हें यह बात समझाना चाहता हूं। और तुम्हें इसे समझना होगा।”
    
    आयुध गहरी सोच में पड़‌ गया। उसने सोचते हुए कहा “अगर मैं मेरी बहन को अपने साथ ले जाऊं तो?”
    
    “वो ऐसा कभी नहीं करेगी। आश्रम छोड़कर जाने की जिद्द तुम्हारी है उसकी नहीं। और जिस तरह से वह तुम पर हावी है, मुझे यह लगता भी नहीं कि तुम उसे मना पाओगे। फिर अंधेरी परछाइयों वाला खतरा, तुम चाहे उस खतरे को खतरा ना मानो। लेकिन हिना उसे खतरा मानती है। उसे यह बात अच्छे से पता है कि यहां आश्रम से बाहर ना तो तुम ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रह पाओगे, ना हीं वह खुद।”
    
    आयुध को चीढ सी होने लगी। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और कमरे में चहल कदमी करते हुए अपने बाल नोचने लगा। “तुम मुझे पूरी तरह से कंफ्यूज कर रहे हो। मुझे यह एहसास दिलाने की कोशिश कर रहे हो कि मेरा फैसला गलत है। और इसमें तुम मेरी बहन का सहारा भी ले रहे हो। मेरी बहन का नाम लेकर तुम मुझे इमोशनल ब्लैकमेल कर रहे हो।”
    
    “मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा..” आर्य भी अपनी जगह से खड़ा हो गया “मैं तुम्हें बस सच्चाई बता रहा हूं। वह सच्चाई जो है। और मैंने तुम्हें जो बताया उसने कुछ भी गलत नहीं है। तुम्हारे चले जाने के बाद वही होगा जो मैंने कहा। यहां तुम्हारी बहन की केयर करने वाला कोई नहीं रहेगा।”
    
    “तुम...” आयुध रुका और आर्य की तरफ गौर से देखने लगा “तुम तो करोगे केयर। हना? तुमने कहा तुम उसके दोस्त हो। दोस्ती के नाते तुम भी केयर कर सकते हो।”
    
    “नहीं मेरे भाई..।” आर्य समझ चुका था कि उसकी बातों का अब आयुध पर असर हो रहा है। लोहा पूरी तरह से गर्म था और उसे बस सही निशाने पर हथोड़ा मारना था। “ मतलब मैं केयर करूंगा मगर उतनी नहीं कर पाऊंगा जितनी तुम करोगे।भाई भाई होता है, जबकि कोई अनजान सिर्फ अनजान। दूसरे शब्दों में कहूं तो अपनों की जगह और कोई भी दूसरा नहीं ले सकता। अपनी बहन की एक अच्छी वाली केयर तो सिर्फ तुम ही कर सकते हो।”
    
    “और इसके लिए मुझे यहां आश्रम में रहना होगा...।”
    
    “यकीनन।” अब आर्य धीमें कदमों से चहल कदमी कर रहा था “तुम्हें यहां आश्रम में सिर्फ रहना ही नहीं होगा... बल्कि वह काम भी करना होगा जिसे करने के लिए तुम्हारा मन करें। तुम चाहो तो तलवारबाजी सीख सकते हो...। और अगर तुम्हारी इच्छा हो तो अपने खाने वाले काम को भी वापस जारी रख सकते हो। तुम्हें यहां आश्रम में अपनी मर्जी का मालिक होकर सब करना होगा। वह भी पूरी तरह से आश्रम के साथ घुलमिल कर।”
    
    “लेकिन मुझे यहां रहने में दिक्कत होती है...?” आयुध का गला रुआंसा सा हो गया था।
    
    “दिक्कत... मगर किस तरह की दिक्कत? क्या तुम्हें यहां कोई तंग करता है? या तुमसे कोई ज्यादा काम करवाता है? या तुम्हारी इच्छाओं को दबाया जा रहा है?”
    
    “नहीं। यह सब नहीं। यह सब नहीं होता।”
    
    आर्य ने जोर देते हुए सवालिया अंदाज में पूछा “तो फिर तुम्हे किस तरह की दिक्कत होती है..? आखिर ऐसी क्या समस्या है जो तुम यहां आश्रम में रहना नहीं चाहते?”
    
    “मैं...वो...मैं...” आयुध के शब्द उसके होठों पर नहीं आ रहे थे। “मुझसे यहां घुला मिला नहीं जा रहा। मैं यहां की चीजों में दिलचस्पी नहीं ले पा रहा। बस यही मेरी दिक्कत है। मुझे यहां रोज के काम ऐसे लगते हैं जैसे वह मुझ पर कोई बोझ हो। सुबह उठो, नहाओ—धोओ, गायत्री मंत्र बोलो, झाड़ू निकालों, कक्षाएं लगाओ। मैं इन सब से बहुत ज्यादा ऊब जाता हूं। मेरा यह सब करने को मन नहीं करता।”

    आर्य ने उसकी बात को समझते हुए कहा “लेकिन मुझे नहीं लगता यह कोई बड़ी समस्या है। यह बस हमारे मन की एक सोच है।” वह आयुध को समझाने लगा “हमारा मन अक्सर उस काम को करने के लिए हमें रोकता है जो हमें करना होता है। सामान्य शब्दों में इसे आलस आना भी कहा जाता है। हमें किसी भी काम को लेकर आलस आता है। जब तक काम को करने के लिए कोई बड़ा मोटिवेशन या बड़ी इच्छा ना हो तब तक काम करने का मन ही नहीं करता। और ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ नहीं होता, बल्कि सभी के साथ होता है। मैंने भी आज ही इस समस्या का सामना किया था। सुबह जब कक्षाएं लगा रहा था तो मुझे बार-बार नींद आ रही थी। यह एक आम चीज है और तुम इसके चलते आश्रम छोड़ने जैसा बड़ा फैसला नहीं कर सकते।”
    
    “तो मैं इसे ठीक कैसे करूं? आखिर ऐसा क्या करूं जो मेरा मन यह सब करने के लिए मान जाए? मेरा मन इन सब कामों में मेरा विरोध ना करें?”
    
    “काफी आसान है। तुम वह करो जो तुम्हारा मन ना करने के लिए कहे।” आर्य आयुध के और करीब हो गया और उसकी पीठ थपथपाई “खुद को मन का गुलाम मत बनाओ.... बल्कि मन को अपना गुलाम बनाओ। अपनी इच्छाओं में आलस के विरुद्ध जाकर काम करो। मन के विरुद्ध जाकर काम करो। तीन-चार दिन थोड़ी समस्या होगी, मगर इसके बाद तुम्हें आदत लग जाएगी। इसके बाद तुम्हें यहां की चीजें पसंद आने लग जाएगी। तुम इनसे उबोगे नहीं।”
    
    “क्या तुम सही कह रहे हो? तुम्हारा यह तरीका काम करेगा।”
    
    आर्य ने अपनी आंखों को झपका “बिल्कुल करेगा। और यकीनन करेगा। बस तुम्हें कोशिश करते रहना है।” 
    
    “मैं कोशिश करूंगा। देखते हैं तुम्हारा तरीका काम करता है या नहीं।”
    
    आर्य के चेहरे पर हल्की खुशी आ गई “यह हुई ना बात मेरे भाई।” उसने आयुध को गले से लगा लिया। उसने गले लगाते हुए पूछा “ क्या अब मैं यह समझूं कि तुम आश्रम को छोड़कर जाने का फैसला बदल दोगे? अब तुम यहां आश्रम में ही रहोगे... वह भी अपनी बहन के साथ। हमेशा उसकी केयर करोगे।”
    
    “तुम समझ सकते हो। लेकिन अभी तीन-चार दिन रुक जाओ। मैं तुम्हारा वाला तरीका आजमा कर देखता हूं, अगर यहां मेरा मन लग गया तो मैं अपना फैसला बदल दूंगा। मैं आश्रम छोड़कर नहीं जाऊंगा।”
    
    आर्य ने सांस ली और बाहर छोड़ी “चलो ठीक है। तुम तीन चार दिन का समय ले सकते हो। इसके बाद तुम्हारा जो भी निर्णय हो बता देना। फिर देखते हैं आगे क्या करना है।” इतना कहकर आर्य ने उसे छोड़ा और बाहर की तरफ देखा। उसके कमरे में खिड़की भी बनी हुई थी जहां से बाहर के दृश्य दिखते थे। बाहर वह आश्रम की बड़ी दीवार को देख रहा था। आज हिना तो दीवार पर नहीं गई थी मगर उसका जाने का मन कर रहा था। दीवार की तरफ देखते हुए उसने कहा “अभी मुझे नींद नहीं आ रही, और सोने का टाइम भी काफी दूर है। क्यों ना हम दोनों चलकर थोड़ा सा दिवार पर घूम आए... कुछ देर के लिए मन भी बहल जाएगा।”
    
    आयुध ने भी खिड़की से बाहर की तरफ देखा। घूमना उसे भी पसंद था। उसने कहा “हां ठीक है। चलो थोड़ा सा घूम ही आते हैं। मैं भी इतनी जल्दी सोने का आदी नहीं हूं।”
    
    दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और बाहर घूमने के लिए चल पड़े। दीवार की ओर।
    
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